BK-16 जेल डायरी: रुपाली जाधव की ज्योति जगताप से मुलाक़ात का संघर्ष

To mark six years of the arbitrary arrests and imprisonment of political dissidents in the Bhima Koregaon case, The Polis Project is publishing a series of writings by the BK-16, and their families, friends and partners. (Read the introduction to the series here.) By describing various aspects of the past six years, the series offers a glimpse into the BK-16’s lives inside prison, as well as the struggles of their loved ones outside. Each piece in the series is complemented by Arun Ferreira’s striking and evocative artwork. (This article has been translated into English by Kumar Unnayan, read it here.)

यह बात उस दिन की है जब ज्योति ने हमें मिलने का वक्त दिया था और वह मिलने नहीं आई,

भीमा कोरेगांव केस को लेकर बाकी कबीर कला मंच के दो साथी रमेश और सागर को अरेस्ट किया गया था और तीसरी बार ज्योति की इंक्वारी के लिए NIA द्वारा मुंबई बुलाया गया था उसिके

दुसरे दिन ज्योती मुझे और हमारे कुछ साथियों से मिलने पुणे के सारसबाग में आने वाली थी।

हमने उसका काफी इंतजार किया और काफ़ी समय के बाद मुझे थोड़ा डाउट आने लगा की जरूर कुछ हुआ होगा,

वरना वह टाइम की तो पक्की है,डिसिप्लिन है।

वह इतनी देर कभी नहीं करेगी मैंने बाकी लोगोको यह बात नोटिस कराई ।

और कहा कि मैं थोड़ा आसपास देखकर आती हूं

कि कहीं वह गलतीसे दूसरी जगह पर तो नहीं गई?

एसे ही उसे ढूंढती रही, ( उसका फ़ोन भी नही लग रहा था,)

तभी मेरे फोन पर एक कॉल आया जिसमें कहा गया कि,

“हम पुणे के एटीएस से बात कर रहे हैं ज्योती जगताप इनको अरेस्ट किया गया है, आप यहां आकर उनकी गाड़ी की चाबी और उनका कुछ सामान है जो ले जा सकते है ।

तभी मैं दौड़कर अपने बाकी साथियों को यह खबर सुनाने गई और कुछ देर में पुणे के शिवाजीनगर एटीएस ऑफिस में अंदर गए।

काफी देर तक बाहर इंतजार करवाने के बाद उन्होंने मुझे अंदर बुलाया

ज्योति से मिलते ही मैंने उसे पूछा कि क्या हुआ?

तुम तो हमसे मिलने आ रही थी और अचानक से तुमने कोई पूर्व सूचना नही दी हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहें थे,

तब ज्योती ने बताया कि में मिलने ही आ रही थी ,घर से निकलते ही दिखा की, घर के आगे पिछे कुछ सस्पेक्टेड लोग खड़े थे जो मेरी गाड़ी चलाने पर मेरा पीछा करने लगे, आगे सिग्नल पर एक पुलिस कर्मी की गाड़ी से महिला पुलिस नीचे उतरकर बाइक को रोकते हुए उन्होंने मुझे कहा की,

“यू आर अंडर अरेस्ट”.

मैंने कहा ohhh, काफ़ी फिल्मी और अटपटे तरीके से तुम्हे अरेस्ट हुआ किया,जबकि तुमने पुलिस की हर चीज का जवाब मेल द्वारा दीया था फिर भी… एक बड़े गुंडे, गैंगस्टर की तरह से अरेस्ट की गई।

फिर मैंने ज्योति को मुस्कुराते हुवे बस एक बात कही की ज्यादा टेंशन मत लेना, अंदर अपना खयाल रखना मानसिक और शारीरिक तौर पर स्ट्रांग रहना अपनी पढ़ाई जारी रखना।

तुम्हारे लिए जेल में तुम्हारी काउंसिलिंग की सारी किताबें भेज दूगी,

साथ ही समयपर मनीआर्डर का इंतजाम कर देगे।

हम दोनों बस इतनी ही बातचीत कर पाए और उसका सामान मेरे हाथों में दिया गया और हम मुस्कुरा कर गले मिले ,

बहुत जल्द फिरसे मिलने का आश्वासन देकर मैं बाहर आ गई।

इस दौरान वहां पर मौजूद एटीएस की महिला अधिकारी हम दोनों को देखकर बस आश्चर्यचकित होकर देखते रही उसके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग हो गए थे शायद उसके चेहरे पर एक सवाल था।

की क्यों इनके चेहरे पर कोई डर नहीं है?

ज्योती के अरेस्ट होने के बाद कोविड चल रहा था जिसके चलते इन लोगों को कोर्ट में हाजिर नहीं किया जा रहा था,

जिस वजह से साथियों से मिलना नहीं हो पाया था।

इसके बाद ज्योती से जितनी भी मुलाकाते हुई वह सारी मुंबई सेशन कोर्ट में ही।

वैसे तो जेल के अंदर क्या-क्या होता है? उनकी कैसी दिनचर्या होती है?

इन सारी चीजों पर मुझे बहुत सारी क्यूरोसिटी हमेशा होती है,

लेकिन जब कोर्ट डेट होता है तो इन सारी चीजों को लेकर बात करने के लिए वक्त नहीं मिलता,

तो पहले उनके हाल-चाल, उनकी जरुरते ,मनीऑर्डर मिला या नहीं?

उनके हेल्थ इश्यू,

बाहर की खबरे, घर के हालचाल,

यह सारी बातें उनके साथ पूरी करने की कोशिश रहती है।

जैल के लोगोको ज्यादातर बाहर की दुनिया में क्या चल रहा है?

बस यही सुनने में ज्यादा दिलचस्पी रहती है, साथ ही उन्हें

यह चीज अपने साथ जोड़ने के लिए जरूरी लगती है,

और क्यों ना हो क्योंकि यह लोग सारी दुनिया से परे एक बंद कमरे में होंते है वह भी ऐसे लोग जो अबतक आजाद पंछी की तरह हरवक्त जनता में जी रहे थे।

तो बहुत ही स्वाभाविक है।

Bk16 के केस को लेकर और इससे भी पहले कबीर कला मंच पर लगे UAPA की केस में लगभग 2013 से आज 2024 तक

कोर्ट, पुलिस,वकील,जज,ऐसी सारी चीज देख-देख कर एक टाइम के बाद मुझे बहुत ही ज्यादा इरिटेट होने लग गया था।

इरिटेड होने का सबसे पहले कारण जब हम किसी दूसरे शहर में जाते है,

जो दोनों का शहर पूरी तरह से अलग है,

जैसे पुणे थोड़ा ठंडा है और चार ही घंटे में मुंबई में इतनी गर्मी का सामना शरीर को करना पड़ता है की इसमें कुछ घंटे में ही बदलाव होकर शरीर काफी डिहाइड्रे और थकावट महसूस करता है और एक चिड़चिड़ापन सा आने लगता था।

यह बात में तीन-चार साल तक समझ ही नहीं पाई की मुंबई में आते ही चिड़चिड़ापन क्यों आ रहा है अब कुछ साल में समझ पा रही हूं कि यह पूरी तरह से बदले हुए माहौल से सिर्फ मेंटली नहीं तो फिजिकल एक्सेप्ट करने में जो एडजस्टमेंट करनी पड़ती है उससे यह हो रहा था,

तो अब यह समझकर एटलिस्ट कम से कम डिहाइड्रेशन हो,

इस चीज को ध्यान में रखकर हर तारीख में साथी से मिलने जाती हूं।

एक तो गर्म माहौल और मुंबई में हर चीज की भीड़ भागदौड़ होती है,

यह भीड़ कोर्ट में भी आपको दिखाई देती है।

कैदी और उनसे मिलने आए रिशतेदार पुलिस फौज, वकील और

उसके बिच बार-बार एक चाय वाला वहां पर घूमता रहता है जो प्रिजनर और उनके घर वालों के साथ ही सरकारी कर्मचारी पुलिस इन

सभी को बीच-बीच में चाय और पानी देकर थोड़ी सी राहत देता है।

तारीख में कभी भी यह निश्चिति नही होती की जेल के साथियोको लाएंगे या नहीं लाएंगे? लाए भी तो कितना समय रखेंगे ? कितने लोगोको लायेंगे?

अभी ही पिछले 3 (जून) तारीख को जब मैं कोर्ट डेट में पूना से मुंबई गई तो इलेक्शन के चलते गार्ड की कमी की वजह से उनकी कोर्ट डेट में  सभी को नहीं लाया गया।

तो यह कुछ बात तय नहीं रहती की क्या होंगा?

तो हर बार हमें वकील से पूछकर आना पड़ता है,

कभी कभी वहा पोहचकर पता चलाता है की आज नही लायेंगे,

लाने के बाद कितना समय तक रखेंगे इसका कोई गारंटी नहीं होता है।

कभी-कभी तो ऐसे होता है कि पुरा दिन रखते है,

तो कभी 10 मिनट आधा घण्टे में भी लेकर जा सकते हैं।

जैसे की 3 तारीख को इलेक्शन की वजहसे ऑलमोस्ट सारी गाड़ियां/ट्रेन लेट थी।

उसके बाद ट्रेन से उतरकर टैक्सी में बैठते ही वकील का मैसेज आया कि “ज्योती कोर्ट में पहुंच गईं है।

कुछ ५ मिनट में फिर से एक मैसेज,

“आपको जल्द से जल्द आना है क्योंकि ज्योती को लेकर जा रहे हैं तभी मन में आया कि यह कैसे संभव है एसे कैसे 10 मिनट में ले जा सकते है?

तो बहुत बार एसे सारे सवाल दिमाग में चलते रहते है पर सारे सवालों को भूलकर बस भाग-दौड़ करके कोर्ट तक पहुंचे और सिर्फ उसे हाथ मिलाया कैसी हो पूछा और 10 मिनट में उसको पुलिस लेकर गई हालांकि वहां पर वकीलोंने और मैने बहुत सारी रिक्वेस्ट की

खुद ज्योति ने भी बहुत सारी रिक्वेस्ट की बट उसका कोई परिणाम पुलिस पर नहीं हो पाया।

मैने कहा की हम लोग पूना से आए है atleast कुछ मिनट रुकिए उन्होने कहा No ।

पांच घंटे आने का और 5 घंटे जानेका का सफर तय करके भी आपको मिलने का मौका मिलेगा ही ऐसा कुछ कह नहीं सकते।

साथ ही कोर्ट डेट में पुरे एक दिनकि छुट्टी लेकर दिनभर का सफर का

और खानेपीने का खर्चा अलग से होता है ।

यह बातें बहुत बार हो चुकी है अब मन भी तैयार हो चुका है कि यहां  हमें जो लगता है,वैसे कुछ नहीं हो सकता है।

आम लोगो को बस सिस्टम बताएंगा,

कि हमें क्या करना है और क्या नहीं?

अब काफी दिन बाद मिले इसकी खुशी मनाएं या सिर्फ 10 मिनट मिले

5 घंटे आने में और 5 घंटे जाने में 9 से 10 घंटे का सफर तय करने के बाद सिर्फ 10 मिनट मिलने दिया इसका दुख करें यह बात भी समझ नहीं आती है।

कभी किसी तारीख पर मैने उसे पूछा अंदर क्या शेड्यूल होता है तो ज्योतीने कहा बस बुक्स पढ़ना exercise करना, अंग्रेजी सीख रही हू

महिलाओ की काउंसलिंग करना।

उनका लीगल प्रोसेस में जितना हो सके हेल्प करना,

पिछली बार उसने मुझे यह कहा था कि मैं ऐसी संस्था या संगठन की इनफार्मेशन निकाल कर दू जो संगठन जेल से बाहर आनेवाली महिलाओं को आगे बढ़ने में मदद करें, तो ज्योती का जेल के अंदर भी एक्टिविज्म ही चलता रहता है ।

क्यों की लोग तो अंदर भी है और बाहर भी।

अब ज्योती को घरवालों से वीडियो कॉल करने की सुविधा होने के कारण उसके मां-बाप या उसके घरवालों के बारे में ज्यादातर बातें होती नहीं क्योंकि वह डायरेक्टली उनसे फोन पर बात कर सकती है।

कभी कभी ज्योती की मां से फोन पर बातें होती है हर बार का यही सवाल होता है कि आखिर ज्योति ने कौन सा गलत काम किया है और उसको बेल कब मिलेगी?

मुझे पता है इसका जवाब मैं पहले 100 बार दे चुकी हूं लेकिन हर बार नए से सारी चीज बताती रहती हूं और जितना हो सके उनकी नजर से सत्ता क्या होती है? देश क्या होता है? देशद्रोह क्या होता है?

जल,जंगल,जमीन क्या का सवाल क्या है?

कार्यकर्ता कलाकार क्या होता है?

यह सब बताने की कोशिश करती हूं।

हम सभी राजकिय कार्यकर्ता है तो ज्यादातर बातें पॉलिटिक्स पर  बाहर की हाल-हवा,संगठन,मोर्चा,आंदोलन और

सभी ऐक्टिविस्ट के जीने की कोशिश पर चलती रहती है ।

ज्योति की बेल भी कोर्ट में डाली गई है तो चांसेस है कि उसे बेल मिल जाए तो इस बार यही बात हुई कि अगर बेल मिलती है तो उसके लिए शुआर्टी के लिए दो लोग और उनके सारे डॉक्यूमेंट तैयार रखना हैं।

तो मैंने उसे बताया कि मैं ऐसे लोगों को ढूंढ रही हूं,

मेरा प्रयास चल रहा है,

जल्द ही लोग मिल जाएंगे और साथ ही उसके बाहर आनेके बाद उसे फिर से जीने के लिए आगे बढ़नेके लिए कैसे मदद हो और उसका काउंसिलिंग सेंटर कैसे तैयार करने में लोगों की मदद ली जाए इस पर सोच रही हूं लोगोसे बात कर रही हू ।

साथ ही उसे यह भी कहा की इसबार शायद सरकार बदले तो तुम्हे और BK16 के सारे लोगों को बेल मिलनेकी संभावना है।

यह सारी बाते हमने चलते चलते की क्यों की पुलिस उसे ले जा रही थी तो आगे एक बैरिकेट लगा जिसने हमें वही पर रूकनेका संदेश दिया, जहां कुछ दुरीपर उसे गाड़ीमे डालकर जेल की तरफ गाड़िको मोड़ दिया।

The above essay
is a part of
BK-16 Prison Diaries
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